स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा जयंती
भगवान बिरसा मुंडा एक महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 1890 में रांची के उलिहाटू नामक गाँव से हुई। यह क्षेत्र उस समय ब्रिटिश शासन के अंतर्गत बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा था। इस उलिहाटू गाँव में उस समय कई आदिवासी जनजातियाँ अपनी पारंपरिक खेती कर जीविकोपार्जन करती थीं। लेकिन वहाँ के जमींदारों और अंग्रेजों ने जबरन उनकी ज़मीनें छीन लीं और उन पर अत्याचार शुरू कर दिए।
ऐसे समय में बिरसा मुंडा नामक एक युवा आदिवासी ने अपने लोगों की ओर से इस आंदोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेजों के खिलाफ डटकर संघर्ष किया। बिरसा मुंडा का यह संघर्ष केवल ज़मीन के लिए नहीं था, बल्कि न्याय और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भी था। इसी कारण वे अपने समाज के लोगों को एकजुट करने में सफल हुए।
भगवान बिरसा मुंडा केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे, बल्कि उनमें बीमार लोगों को ठीक करने की एक अद्भुत शक्ति भी थी। उन्होंने इस शक्ति का उपयोग कर अनेक लोगों का उपचार किया। इसी वजह से बाद में उन्हें “धरती आबा” के नाम से भी जाना जाने लगा।
बिरसा मुंडा की विरासत और महिलाओं की भूमिका
बिरसा मुंडा की विरासत में महिलाओं का सशक्तिकरण भी शामिल है, क्योंकि ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके संघर्ष में महिलाएँ सक्रिय रूप से सहभागी थीं। उन्होंने अपने समाज के अधिकारों के लिए जो लड़ाई लड़ी, उसमें स्वाभाविक रूप से महिलाओं के अधिकार भी शामिल थे। उनका आंदोलन आने वाली पीढ़ियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देता रहा। यद्यपि ऐतिहासिक अभिलेखों में महिला नेताओं का उल्लेख सीमित है, फिर भी मुंडा समाज में महिलाएँ समुदाय की बराबरी की सदस्य मानी जाती थीं।
मुंडा आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी
सक्रिय भागीदारी:
महिलाओं ने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 'उलगुलान' (विद्रोह) में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ सक्रिय रूप से भाग लिया।
मुख्य भूमिकाएँ:
उन्होंने हथियारों की तस्करी और विभिन्न इकाइयों के बीच संदेश या संसाधन पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया, कई बार अपने शरीर में हथियार छिपाकर उन्हें ले जाया करती थीं।
प्रतिरोध का प्रतीक:
वे केवल अनुयायी नहीं थीं, बल्कि अपने समुदाय के अधिकारों, स्वतंत्रता और पहचान के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ीं।
समाज में समानता:
मुंडा समाज में महिलाएँ आर्थिक रूप से समान भागीदार मानी जाती थीं। उन्हें पुरुषों के साथ काम करने, गाने और नृत्य करने की स्वतंत्रता थी, हालांकि निर्णय-निर्माण और संपत्ति के अधिकारों में उनकी भूमिका सीमित थी।
स्थायी विरासत भविष्य के आंदोलनों के लिए प्रेरणा:
बिरसा मुंडा की विरासत ने आगे चलकर आदिवासी अधिकारों और स्वतंत्रता के आंदोलनों को प्रेरित किया।
आगामी आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी:
उनके आंदोलन में महिलाओं की सक्रिय भूमिका ने भविष्य के स्वतंत्रता आंदोलनों — जैसे असहयोग आंदोलन — में महिलाओं की भागीदारी के लिए एक मिसाल कायम की।
सरकारी मान्यता:
आज सरकारें आदिवासी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए "आदिवासी महिला सशक्तिकरण योजना" जैसी योजनाएँ चला रही हैं, जिनकी प्रेरणा बिरसा मुंडा जैसे महान नेताओं से मिली है।
ऐसे अद्भुत स्वतंत्रता सेनानी का जन्मदिन — 15 नवंबर — वर्ष 2021 से “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाया जा रहा है। वर्ष 2024, बिरसा मुंडा की जन्म जयंती का 150वां वर्ष होने के कारण पूरे वर्षभर उनकी स्मृति में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। साथ ही, “धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान” और “प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान” जैसी योजनाएँ भी चलाई गईं।
भगवान बिरसा मुंडा जी को जयंती पर शत-शत नमन!