भारतीय संविधान में महिलाओंका सहभाग

Drishti    26-Nov-2025
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भारतीय संविधान दिवस हर साल 26 नवंबर को मनाया जाता है, यह दिन 1949 में भारत के संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन को "राष्ट्रीय विधि दिवस" के रूप में भी जाना जाता है और यह डॉ. बी.आर. अंबेडकर के संविधान निर्माण में योगदान के सम्मान में मनाया जाता है। भारत के संविधान सभा में कुल १५ महिलाए शामिल थी जिनमेंसे कुछ गिने चुने नाम है सरोजिनी नायडू , विजयलक्ष्मी पंडित तथा सुचेता कृपलानी।
 
अम्मू स्वामीनाथन, एनी मैस्करीन, बेगम कुदसिया ऐज़ाज़ रसूल और दक्षिणायनी वेलायुधन जैसे कम-ज्ञात सदस्यों को भी भारत के संविधान को आकार देने के क्रम में मान्यता दी गई। उनका योगदान इस प्रकार है :
 
अम्मू स्वामीनाथन: केरल में विधवाओं पर लगे सामाजिक प्रतिबंधों को देखने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। हिंदू कोड बिल के माध्यम से लैंगिक समानता का समर्थन किया गया।

एनी मास्कारेन (1902-1963): उन्होंने जातिवाद के विरोध के क्रम में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार हेतु अभियान चलाया।

बेगम कुदसिया ऐज़ाज़ रसूल (1909-2001): यह मुस्लिम लीग की सदस्य थी। उन्होंने विभाजन पर जटिल विचारों के बावजूद धर्म आधारित निर्वाचन का विरोध किया।
 
दक्षिणायनी वेलायुधन (1912-1978): यह विज्ञान में स्नातक करने वाली पहली दलित महिला और कोचीन विधान परिषद की पहली दलित महिला थी। उन्होंने दलितों के लिये अलग निर्वाचन क्षेत्र का विरोध करने के साथ राष्ट्रवाद पर बल दिया।

भारत के संविधान के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
 
संविधान सभा: संविधान सभा को संविधान का मसौदा तैयार करने में लगभग तीन साल (2 साल, 11 महीने, 17 दिन) लगे। शुरू में, इसमें कुल 389 सदस्य थे, जिनमें से 292 प्रांतीय विधान सभाओं से, 93 रियासतों से और 4 मुख्य आयुक्तों के प्रांतों से चुने गए थे

हालाँकि, वर्ष 1947 में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के बाद, पाकिस्तान के लिये एक अलग संविधान सभा का गठन किया गया, जिससे भारत की संविधान सभा की सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई।

मूल संरचना (1949): प्रारंभ में, इसमें एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ शामिल थीं

वर्तमान संरचना: इसमें वर्तमान में एक प्रस्तावना, 450 से अधिक अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं।

संशोधन: सितंबर 2024 तक, वर्ष 1950 में पहली बार अधिनियमित होने के बाद से भारत के संविधान में 106 संशोधन हुए हैं।

लंबाई: भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।

इसके सुलेखक प्रेम बिहारी नारायण रायजादा थे तथा इसके पृष्ठों को नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा सजाया गया था।
 
विस्तृत आकार का कारण: भारत के आकार और विविधता ने एक व्यापक संविधान को आवश्यक बना दिया है।

वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम, जो स्वयं एक व्यापक दस्तावेज़ था, के प्रभाव ने संविधान के आकार में योगदान दिया है।
भारत का एकल एकीकृत संविधान, जो केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को नियंत्रित करता है, जो इसके आकार को विस्तृत बनाता है।
 
कानूनी विशेषज्ञों के नेतृत्व में संविधान सभा ने एक ऐसा संविधान तैयार किया जो कानूनी और प्रशासनिक दोनों ही पहलुओं से संपूर्ण है, जिसमें मौलिक शासन सिद्धांतों के साथ-साथ विस्तृत प्रशासनिक प्रावधान भी शामिल हैं।

इसके अलावा संविधान विभिन्न वैश्विक स्रोतों से लिया गया है तथा इसके प्रावधान अमेरिकी, आयरिश, ब्रिटिश, कनाडाई, ऑस्ट्रेलियाई, जर्मन और अन्य संविधानों से प्रेरित हैं, जो इसके डिज़ाइन पर व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को दर्शाते हैं।

भारतीय संविधान किस प्रकार एक "जीवंत दस्तावेज़" है?
 
संशोधनीयता: भारतीय संविधान में बदलती ज़रूरतों एवं परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किया जा सकता है। यह अनुकूलन इसे समय के साथ विकसित होने एवं इसके मूल सिद्धांतों को बनाए रखने में सहायक है।
 
संशोधन का प्रावधान: भाग XX में अनुच्छेद 368, संसद को निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए, किसी भी प्रावधान को शामिल करने, बदलने या निरस्त करने के द्वारा संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है।
 
संसद संविधान के 'मूल ढाँचे' में संशोधन नहीं कर सकती (जैसा कि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले, 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था) है।